तास सम तुलि नही आन कोऊ ।। एक ही एक अनेक होइ बिसथरिओ, आन रे आन भरपूरि सोऊ ।। रहाउ ।। जा कै भागवतु लेखीऐ अवर नही पेखीऐ, तास की जाति आछोप छीपा ।। बिआस महि लेखीऐ सनक महि पेखीऐ, नाम की नामना सपत दीपा ।।१।। जा कै ईदि बकरीदि कुल गऊ रे बधु करहि , मानीअहि सेख सहीद पीरा ।। जा कै बाप वैसी करी पूत ऐसी सरी, तिहू रे लोक परसिध कबीरा ।।२।। जा के कुटुमब के ढेढ सभ ढोर ढोवंत फिरहि , अजहु बंनारसी आस पासा ।। आचार सहित बिप्र करहि डंडउति , तिन तनै रविदास दासान दासा ।।३।।२।। |
हरि जपत तेऊ जना पदम कवलास पति तास सम तुलि नही आन कोऊ ।। एक ही एक अनेक होइ बिसथरिओ आन रे आन भरपूरि सोऊ ।। रहाउ ।। हरि का नाम जपने वालों के बराबर न ब्रह्माजी, न कैलाश पर्वत के मालिक शिवजी और न ही कोई अन्य है । संसार में एक ही ब्रह्म है जो अनेक रूपों में होकर भी सभी में विद्यमान है, इसलिए हे भाई ! तू 'उस' एक परमात्मा को अपने हृदय में ले आ अर्थात् उसका सिमरन कर । जा कै भागवतु लेखीऐ अवर नही पेखीऐ तास की जाति आछोप छीपा ।। बिआस महि लेखीऐ सनक महि पेखीऐ नाम की नामना सपत दीपा ।।१।। सतगुरु नामदेव जी के घर में केवल भगवंत की भक्ति लिखी जाती है और उसके अतिरिक्त वहाँ कुछ नहीं दिखता । उनकी जाति छीपा ( दर्जी ) जिन्हें लोग अछूत कहते थे । किंतु प्रभु-भक्ति करके वे परमात्मा का ही रूप हो गए । व्यास ऋषि के लिखे ग्रंथों में और ब्रह्मा जी के पुत्र सनक के जीवन में नाम की महिमा देखी जाती है । प्रभु नाम की महिमा सातों द्वीपों में हो रही है । जा कै ईदि बकरीदि कुल गऊ रे बधु करहि मानीअहि सेख सहीद पीरा ।। जा कै बाप वैसी करी पूत ऐसी सरी तिहू रे लोक परसिध कबीरा ।।२।। हे भाई ! कबीर के कुटुम्ब में ईद-बकरीद के पर्वों पर गो-वध होता था और शेख, शहीदों और पीरों को पूजा जाता था । जिसका पिता यह सब कर्म करता रहा, उसका पुत्र कबीर परमात्मा का नाम जप के तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो गया । जा के कुटुमब के ढेढ सभ ढोर ढोवंत फिरहि अजहु बंनारसी आस पासा ।। आचार सहित बिप्र करहि डंडउति तिन तनै रविदास दासान दासा ।।३।। गुरू रविदास जी कहते हैं कि जिस कुटुम्ब के सारे नीच लोग आज भी बनारस के आस-पास मरे हुए पशुओं को ढोते हैं, मैं उन्हीं की संतान हूँ, लेकिन दासों का दास हूँ जिसे आदरपूर्वक ब्राह्मण भी दण्डवत् प्रणाम करते हैं । |