गरीब निवाज गुसईआ मेरा माथै छत्र धरै ।।१।। रहाउ ।। जा की छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ।। नीचह ऊच करै मेरा गोबिंद काहू ते न डरै ।।१।। नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै ।। कहि रविदास सुनहु रे संतहु हरि जीउ ते सभै सरै ।।२।।१।। |
ऐसी लाल तुझ बिन कउन करै ।। गरीब निवाज गुसईआ मेरा माथै छत्र धरै ।।१।। रहाउ ।। मेरे सुंदर प्रभु ! ऐसा चमत्कार तुम्हारे बिना दूसरा कौन कर सकता है ? हे मेरे गोसाई, आप गरीब-निवाज हो । मेरे माथे पर आपने यश रूपी छत्र रख दिया है । जा की छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ।। नीचह ऊच करै मेरा गोबिंद काहू ते न डरै ।।१।। जिस मनुष्य की छूत सारे संसार को लगती है, उस अछूत पर भी तुमने स्वयं ही कृपा की है । हे भाई ! मेरे गोविंद ने मुझ नीच को भी ऊँचा कर दिया है और वह किसी से डरता भी नहीं है । नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै ।। कहि रविदास सुनहु रे संतहु हरि जीउ ते सभै सरै ।।२।।१।। प्रभु की कृपा से ही नामदेव जी ( छीपा ), कबीर दास जी ( जुलाहा ), त्रिलोचन जी ( ब्राह्मण ), सधना जी ( कसाई ), सैण जी ( नाई ) आदि प्रभु-भक्त इस भवसागर से पार हो गए हैं । गुरू देव रविदास जी कहते है कि हे संतजनों ! सुनो, प्रभु सब कुछ करने में समर्थ है । |