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राग मारू बाणी रविदास जिउ की
ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
   
सुख सागर सुरितरु चिंतामनि कामधेन बसि जा के रे ।।
चार पदार्थ असट महा सिधि नव निधि कर तल ता कै ।।१।।
हरि हरि हरि न जपसि रसना ।।
अवर सभ छाडि बचन रचना ।।१।। रहाउ ।।

नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अछर माही ।।
बिआस बीचारि कहिओ परमार्थ राम नाम सर नाही ।।२।।
सहज समाधि उपाधि रहत होइ बडे भागि लिव लागी ।।
कहि रविदास उदास दास मति जन्म मरन भै भागी ।।३।।

 
सुख सागर सुरितरु चिंतामनि कामधेन बसि जा के रे ।।
चार पदार्थ असट महा सिधि नव निधि कर तल ता कै ।।१।।

हरि सुखों का सागर है, जिस के वश में स्वर्ग के कल्पवृक्ष, चिंतामणि और कामधेनु गाय है ।
धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष ये चारों पदार्थ, आठ महान सिद्धियाँ और नौ निधियाँ भी 'उसके' हाथों ही हथेली पर हैं ।

हरि हरि हरि न जपसि रसना ।। अवर सभ छाडि बचन रचना ।।१।। रहाउ ।।
हे मानव ! तू अन्य सब बेकार की बातें छोड़कर अपनी जीभ से केवल हरि-हरि क्यों नहीं जपता ?

नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अछर माही ।।
बिआस बीचारि कहिओ परमार्थ राम नाम सर नाही ।।२।।

चौंतीस अक्षरों में लिखे जो ब्रह्मा के वेद है और पुराणों में जो अनेक प्रकार के प्रसंग हैं,
व्यास ऋषि ने इन सब पर विचार करके यह परमार्थी तत्व बताया है कि राम-नाम के बराबर कुछ नहीं है ।

सहज समाधि उपाधि रहत होइ बडे भागि लिव लागी ।।
कहि रविदास उदास दास मति जन्म मरन भै भागी ।।३।।

गुरू रविदास जी कहते है कि हे मानव ! बड़े भाग्य से मनुष्य की सहज समाधि प्रभु-चरणों में जुड़ती है ,
उस सेवक की बुद्धि माया की ओर से विरक्त रहती है तथा उसके जन्म-मरण के मय भी नष्ट हो जाते हैं ।