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ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
गउड़ी बैरागणि रविदास जीउ ।।
   
घट अवघट डूगर घणा इक निरगुण बैल हमार ।।
रमईए सिउ इक बेनती मेरी पूंजी राख मुरार ।।
को बनजारो राम को मेरा टांडा लादिआ जाऐ रे ।।१।। रहाउ।।
हउ बनजारो राम को सहज करउ ब्यापारु ।।
मै राम नाम धन लादिआ बिख लादी संसार ।।२।।
उरवार पार के दानीआ लिखि लेहु आल पताल ।।
मोहि जम डंड न लागई तजीले सरब जंजाल ।।३।।
जैसा रंग कसुंभ का तैसा ऐहु संसार ।।
मेरे रमईए रंग मजीठ का कह रविदास चमार ।।४।।

शब्द अर्थ :घट - रस्ता । डूगर - पहाडी । निरगुण - गुण रहित । टांडा - बैल गाडियों का समुह ( काफीला )
घट अवघट डूगर घणा इक निरगुण बैल हमार ।। रमईए सिउ इक बेनती मेरी पूंजी राख मुरार ।।
परमात्मा से मिलने की राह बड़ी कठिन है और मेरा जीवन रुपी बैल गुणहीन है । इस लिए प्रभु से मेरी एक विनती है कि हे मुरारी ! मेरी नाम और श्रद्धा की पूँजी बचा लो ।

को बनजारो राम को मेरा टांडा लादिआ जाऐ रे ।।१।। रहाउ।।
हे भाई प्रभु के नाम का व्यापार करने वाला कोई व्यापारी है तो मेरा भी माल लादा जा सके ( भाव उस की सहायता से मैं भी हरि-नाम का व्यापार कर सकु ।१।

हउ बनजारो राम को सहज करउ ब्यापारु ।। मै राम नाम धन लादिआ बिख लादी संसार ।।२।।
मैं राम नाम का व्यापारी हूँ और सहज-ज्ञान का सौदा करता हूँ। मैंने तो राम नाम रुपी धन ही लादा है, किंतु लोग तो विषय-विकारों ( विष ) का सौदा ही लादते जा रहे हैं ।२।

उरवार पार के दानीआ लिखि लेहो आल पताल ।। मोहि जम डंड न लागई तजीले सरब जंजाल ।।३।।
हे लोक-परलोक का लेखा लेने वाले प्रभु ( चित्रगुप्त ) तुमने मेरे भाग्य में जो भी लेख लिखना हो लिख लो पर मुझे तो यमराज का दण्ड नहीं लग सकता क्योंकि मैंने सांसारिक झमेलों को छोड़ दिया है ।

जैसा रंग कसुमभ का तैसा ऐहु संसार ।। मेरे रमईए रंग मजीठ का कह रविदास चमार ।।४।।
चमार जाति में पैदा होने वाले भगत रविदास जी कहते हैं कि इस संसार का रंग कुसम्बी के रंग जैसा लाल व जल्दी ही फीका पड़ने वाला है अर्थात कच्चा है, परंतु मेरे प्रभु का रंग मजीठ के समान पक्का है जो कभी भी फीका नहीं पड़ता ।