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राग गउड़ी रविदास जी के पदे गउड़ी गुआरेरी
ੴ सतिनाम करता पुरख गुरप्रसादि ।।
   
बेगम पुरा सहर को नाउ।।
दूख: अंदोह नही तह ठाउ।।
न तसवीस खिराजु न माल ।।
खउफ न खता न तरस जवाल ।।१।।
अब मोहि खूब वतन गह पाई ।।
ऊहां खैर सदा मेरे भाई ।।१।। रहाउ ।।

काइम दाइम सदा पातिसाही ।।
दोम न सेम एक सो आही ।।
आबादान सदा मसहूर ।।
ऊहां गनी बसहि मामूर ।।२।।
तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै ।।
महरम महल न को अटकावै ।।
कहि रविदास खलास चमारा ।।
जो हम सहरी सु मीत हमारा ।।३।।२।।
शब्द अर्थ : बेगम - बिना गम के, । अंदोह - चिन्ता, । तसवीस - सोच, । खिराजु - कर, टैक्स, । जवाल - धाटा, । आबादान - आबाद, । गनी - धनी, । मामूर - त्रिप्त, । सैल करहि - मन मर्जी से, । महरम - जान कार, । हम सहरी - हम वतन, हम शहरी
इस शब्द में भगत रविदास जी उची आत्मक अवसथा की बात करते है। कि प्रमात्मा से अभेद जीव कैसे स्थान पर वास करता है ।

बेगम पुरा सहर को नाउ।। दूख: अंदोह नही तह ठाउ।।
सतगुरु रविदास महाराज जी फरमाते हैं कि जिस शहर में मैं रहता हूँ उस शहर का नाम बेग़मपुरा शहर है। जो सब तरह के ग़म से मुक्त है । उस शहर में दु:ख और चिन्ता के लिए कोई स्थान नहीं है ।

न तसवीस खिराजु न माल ।। खउफ न खता न तरस जवाल ।।१।।
बेग़मपुरा शहर में न कोई चिंता है न कोई घबराहट । न प्रभु के नाम का व्यापार करने के बदले कोई टैक्स देना पड़ता है । उस बेग़मपुरा के वासी डर, द्वेष, गुनाह, इच्छा, कमी से मुक्त है और परमात्मा में अभेद हैं ।

अब मोहि खूब वतन गह पाई ।। ऊहां खैर सदा मेरे भाई ।।१।। रहाउ ।।
हे भाई मैंने प्रभु के बेग़मपुरा शहर में उत्तम और अटल स्थान प्राप्त कर लिया है। इस शहर में सदैव सुख प्राप्त है।
काइम दाइम सदा पातिसाही ।। दोम न सेम एक सो आही ।।
उस शहर में परमात्मा की सत्ता सदैव स्थिर रहने वाली है। वहाँ प्रभु के अतिरिक्त कोई दूसरा या तीसरा नहीं वहां केवल एक मृत्यु रहित प्रमात्मा की सत्ता सदैव अटल रहने वाली है ।

आबादान सदा मसहूर ।। ऊहां गनी बसहि मामूर ।।२।।
उस परमात्मा का बेग़मपुरा शहर आध्यात्मिक जनसंख्या वाली रूहों से सदा आबाद है और प्रसिद्ध है। वहां प्रभु का नाम सिमरन करने वाली अमीर, सब्र-संतोष और इच्छायों से मुक्त आत्माए रहती हैं ।

तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै ।। महरम महल न को अटकावै ।।
बेग़मपुरा शहर की निवासी आत्माएं उस शहर में अपनी इच्छानुसार गमन करती हैं । उस बेग़मपुरा के महलों को जानने वालीं आत्माओं के रस्ते में कोई रूकावट नहीं आती ।

कहि रविदास खलास चमारा ।। जो हम सहरी सु मीत हमारा ।।३।।२।।
सतगुरु रविदास महाराज जी वर्णन करते हैं कि मैं प्रभु का नाम स्मरण कर सभी तरह के बंधनों से मुक्त हो गया हूँ । जो भी जीव इन बंधनों से मुक्त है, वह शुद्ध है। वही मेरा मित्र है और मेरा हमशहरी है ।