ऐसे मेरा मन बिखिआ बिमोहिआ कछु आरा पारु न सूझ ।। १।। सगल भवन के नाइका इकु छिन दरस दिखाइ जी ।। रहाउ ।। १।। मलिन भई मति माधवा तेरी गत लखी न जाए ।। करहु किृपा भ्रम चूकई मै सुमति देहु समझाइ ।। २।। जोगीसर पावहि नही तुअ गुण कथन अपार ।। प्रेम भगति कै कारणै कहु रविदास चमार ।।३।। |
शब्द अर्थ :- कूप - कुआ, । दादर - मेंढक, । बिखिआ - विषय-वासना, । नाइका - मालिक |
कूप भरिओ जैसे दादरा कछु देस बदेस न बूझ ।। ऐसे मेरा मन बिखिआ बिमोहिआ कछु आरा पारु न सूझ ।। १।। जिस तरह कुएँ में पड़े हुये मेंढक को बाहरी दुनिया का ज्ञान नहीं होता, उसी तरह विषय-वासनाओं के मोह में पड़े मेरे मन को न तो इस लोक की कोई सूझ है औेर न ही दूसरे लोक की अर्थात् न आत्मा - परमात्मा की । सगल भवन के नाइका इकु छिन दरस दिखाइ जी ।। रहाउ ।।१।। हे सारी दुनिया के मालिक ! ऐसी स्थिति में मुझे केवल एक क्षण के लिए अपना दर्शन दें । मलिन भई मति माधवा तेरी गत लखी न जाए ।। करहु किृपा भ्रम चूकई मै सुमति देहु समझाए ।। २।। हे प्रभु ! मेरी बुध्दि मलीन हो गई है इसलिए मैं तुम्हारी गति ( महानता ) को समझ नहीं सकता । तुम ऐसी कृपा करो कि मेरे भीतर का भ्रम दूर हो जाये और मुझे ऐसी सदबुध्दि दो कि मुझे आत्मा और परमात्मा का ज्ञान हो जाये । जोगीसर पावहि नही तुअ गुण कथन अपार ।। प्रेम भगति कै कारणै कहु रविदास चमार ।। ३।। हे अनंत प्रभु ! बड़े-बड़े योगी और ज्ञानी भी आपके भेद को नहीं पा सके। तुम्हारे गुणों का वर्णन करना असंभव है । चमार जाति में पैदा होने वाले गुरू रविदास जी कहते है कि प्रेम और भक्ति के कारण ही मैं आपसे ऐसी विनती कर रहा हूँ । |