पन्ना ११९६
ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
बसंत बाणी रविदास जी की
   
तुझहि सुझंता कछू नाहि ।।
पहिरावा देखे ऊभि जाहि ।।
गरबवती का नाही ठाउ ।।
तेरी गरदनि ऊपरि लवै काउ ।।१।।
तू कांए गरबहि बावली ।।
जैसे भादउ खूमबराज
तू तिस ते खरी उतावली ।।१।। रहाउ ।।

जैसे कुरंक नही पाइओ भेद ।।
तन सुगंध ढूढै प्रदेसु ।।
अप तन का जो करे बीचारु।।
तिसु नही जमकंकरु करे खुआरु।।२।।
पुत्र कलत्र का करहि अहंकारु ।।
ठाकुरु लेखा मगनहारु ।।
फेड़े का दुखु सहै जीउ।।
पाछे किसहि पुकारहि पीउ पीउ ।।३।।
साधू की जउ लेहि ओट ।।
तेरे मिटहि पाप सभ कोटि कोटि ।।
कहि रविदास जो जपै नाम ।।
तिसु जाति न जन्म न जोनि कामु ।।४।।१।।

 
तुझहि सुझंता कछू नाहि ।। पहिरावा देखे ऊभि जाहि ।।
गरबवती का नाही ठाउ ।। तेरी गरदनि ऊपरि लवै काउ ।।१।।

हे मेरी काया ! तुझे अब कुछ नहीं सुझता। तू अपना सुन्दर पहनावा देखकर अहंकार में सिर ऊँचा करने लगी है ।
याद रखना, अहंकारी का कोई स्थान नहीं होता । हे काया ! तेरे सिर पर यम रूपी कौआ-काँव काँव कर रहा है।

तू कांए गरबहि बावली ।।
जैसे भादउ खूमबराज तू तिस ते खरी उतावली ।।१।। रहाउ ।।

हे पागल काया ! तू क्यों और किसका अहंकार करती है ?
तू तो भादों में उगते बड़े-बड़े कुकुरमुत्तों से भी जल्दी नष्ट होने वाली है ।

जैसे कुरंक नही पाइओ भेद ।। तन सुगंध ढूढै प्रदेसु ।।
अप तन का जो करे बीचारु।। तिसु नही जमकंकरु करे खुआरु।।२।।

जिस प्रकार हिरण को इस बात का भेद नहीं कि कस्तूरी की सुगंध तो उसके अपने शरीर से ही आ रही है, वह उसे बाहर खोजता फिरता है,
जो जीव अपने शरीर का विचार करके परमात्मा की खोज अपने अंदर करता है, उसे यमदूत भी खराब नहीं करते ।

पुत्र कलत्र का करहि अहंकारु ।। ठाकुरु लेखा मगनहारु ।।
फेड़े का दुखु सहै जीउ।। पाछे किसहि पुकारहि पीउ पीउ ।।३।।

जो अपने पुत्र और स्त्री का अभिमान करता है, उससे प्रभु लेखा माँगेगा ।
हे जीव जिस समय तुझे अपने कुकर्मों का फल भोगना पड़ेगा उस समय अपनी सहायता के लिए तू किसे प्यारा-प्यारा कहकर पुकारेगा ?

साधू की जउ लेहि ओट ।। तेरे मिटहि पाप सभ कोटि कोटि ।।
कहि रविदास जो जपै नाम ।। तिसु जाति न जन्म न जोनि कामु ।।४।।१।।

हे जीव ! यदि तू साधु का आसरा ले लेगा तो तेरे करोड़ों पाप मिट जाएँगे ।
गुरू रविदास जी कहते हैं कि जो प्राणी नाम जपता है, उसका जन्म, जाति तथा योनियों के साथ कोई संबंध नहीं रहता अर्थात वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है ।