जो दीसै सो होए बिनासा ।। बरन सहित जो जापै नाम ।। सो जोगी केवल निहकाम ।। परचै राम रवै जउ कोई ।। पारस परसै दुबिधा न होई ।।१।। रहाउ ।। सो मुनि मन की दुबिधा खाए ।। बिन दुआरे त्रै लोक समाए ।। मन का सुभाउ सभ कोई करै ।। करता होए सु अनभै रहै ।।२।। फल कारन फूली बनराए ।। फलु लागा तब फूल बिलाए ।। गिआनै कारन कर्म अभिआस ।। गिआन भयआ तह करमह नासु ।।३।। घ्रीत कारन दधि मथै सयआन ।। जीवन मुक्त सदा निरबान ।। कहि रविदास परम बैराग ।। रिदै राम की न जपस अभाग ।।४।। |
बिन देखे उपजै नही आसा ।। जो दीसै सो होए बिनासा ।। बरन सहित जो जापै नाम ।। सो जोगी केवल निहकाम ।। प्रभु को देखे बिना 'उससे' मिलने की आशा उत्पन्न नहीं होती । यह जो कुछ दिख रहा है, वह नाश होने वाला है । जो मनुष्य प्रेम सहित प्रभु का नाम जपता है, केवल वही कामना-रहित योगी होता है । परचै राम रवै जउ कोई ।। पारस परसै दुबिधा न होई ।।१।। रहाउ ।। जब कोई मनुष्य गुरू के उपदेश अनुसार प्रभु का नाम सिमरन करता है तो उसके जीवन की दुविधा समाप्त हो जाती है । जैसे पारस के छूने से लोहा भी सोना बन जाता है वैसे ही गुरू पारस से छूकर जीव सोने की तरह शुद्ध हो जाता है । सो मुनि मन की दुबिधा खाए ।। बिन दुआरे त्रै लोक समाए ।। मन का सुभाउ सभ कोई करै ।। करता होए सु अनभै रहै ।।२।। सच्चा मुनि वही है जो मन की दुविधा को मिटा देता है और दस-कर्म इन्द्रियों से रहित तीनों लोकों में समाए हुए परमात्मा में लीन हो जाता है । सभी जीव अपने-अपने मन के स्वभाव के अनुसार कर्म करते हैं, किन्तु जो मन को वश में कर लेता है वह प्रभु से एक रूप होकर निडरता से विचरता है । फल कारन फूली बनराए ।। फलु लागा तब फूल बिलाए ।। गिआनै कारन कर्म अभिआस ।। गिआन भयआ तह करमह नासु ।।३।। वनस्पति फल देने के लिए खिलती है । जब फल लग जाता है तो फूल झड़ जाते हैं इसी प्रकार जिज्ञासु ज्ञान प्राप्त करने के लिए कर्म-काण्ड का अभ्यास करता है । जब ज्ञान रूपी फल प्राप्त हो जाता है, तो कर्म रूपी फूलों का स्वयं ही नाश हो जाता है । घ्रीत कारन दधि मथै सयआन ।। जीवन मुक्त सदा निरबान ।। कहि रविदास परम बैराग ।। रिदै राम की न जपस अभाग ।।४।। जैसे सियानी स्त्री घी के लिए मक्खन निकलने तक दही बिलोती है वैसे ही ब्रह्माज्ञान की प्राप्ति के बाद मनुष्य जीते-जी मुक्त हो जाता है और सदैव वासना-रहित रहता है । सतिगुरू रविदास जी यह सबसे ऊँचे वैराग्य की बात बताते हैं, कि हे भाग्यहीन ! राम तेरे हृदय में ही है, तू उसका जाप क्यों नहीं करता ? |