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राग केदारा बाणी रविदास जीउ की
ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
   
खट करम कुल संजुगत है हरि भगति हिरदै नाहि ।।
चरनारबिंद न कथा भावै सुपच तुलि समानि ।।१।।
रे चित चेति चेत अचेत ।।
काहे न बालमीकहि देख ।।
किसु जाति ते किह पदहि अमरिओ राम भगति बिसेख ।।१।। रहाउ ।।
सुआन सत्रु अजात सभ ते किृष्ण लावै हेत ।।
लोग बपुरा किआ सराहै तीनि लोक प्रवेस ।।२।।
अजामलु पिंगुला लुभतु कुंचरु गए हरि कै पासि ।।
ऐसे दुरमति निसतरे तू किउ न तरहि रविदास ।।३।।१।।

 
खट करम कुल संजुगत है हरि भगति हिरदै नाहि ।।
चरनारबिंद न कथा भावै सुपच तुलि समानि ।।१।।

यदि कोई मनुष्य ६ कर्म पढ़ना और पढ़ाना, यज्ञ करना और करवाना, दान करना और करवाना आदि करता है,
पर उसके हृदय में हरि की भक्ति नहीं और उसको प्रभु के सुन्दर चरण-कमलों की कथा अच्छी नहीं लगती तो वह चांडाल के बराबर है ।

रे चित चेति चेत अचेत ।। काहे न बालमीकहि देख ।।
किसु जाति ते किह पदहि अमरिओ राम भगति बिसेख ।।१।। रहाउ ।।

हे मेरे अचेत मन! मैं तुझे याद दिलाता हूँ कि तू बार-बार प्रभु को याद कर। तू महर्षि बाल्मीकि के जीवन से प्रेरणा क्यों नहीं लेता ?
एक निम्न जाति से उठ कर वह कितनी ऊँचाई पर पहुँच गए । यही प्रभु-भक्ति की विशेषता है ।

सुआन सत्रु अजात सभ ते किृष्ण लावै हेत ।।
लोग बपुरा किआ सराहै तीनि लोक प्रवेस ।।२।।

महर्षि बाल्मीकि लोभ रूपी कुत्तों के शत्रु अर्थात कुतों को मारने वाले थे और वह सबसे नीच चाति के चांडाल माने जाते थे । परन्तु प्रभु-भक्ति के कारण उन्हीं के आने से पांड़वों का यज्ञ सम्पूर्ण हुआ ।
बेचारे लोग तो उनकी सराहना ही नही कर सकते हैं तीनों लोकों मे उनकी शोभा हो रही है ।

अजामलु पिंगुला लुभतु कुंचरु गए हरि कै पासि ।।
ऐसे दुरमति निसतरे तू किउ न तरहि रविदास ।।३।।१।।

अजामल जैसा दुराचारी, पिंगला जैसी वैश्या, लुब्य शिकारी और कुंचर हाथी ये सारे प्रभु सिमरन करके 'हरि' के पास चले गए ।
हे रविदास ! यदि इतनी कुबुद्धि वाले प्राणी भी-प्रभु-सिमरन से पार हो गए तो तू क्यों नहीं पार हो सकता ?