बिन मुकंद तन होए अउहार ।। सोई मुकंद मुक्ति का दाता ।। सोई मुकंद हमरा पित माता ।।१।। जीवत मुकंदे मरत मुकंदे ।। ता के सेवक कउ सदा अनंदे ।। रहाउ ।। मुकंद मुकंद हमारे प्रानं ।। जपि मुकंद मस्तक नीसानं ।। सेव मुकंद करै बैरागी ।। सोई मुकंद दुरबल धन लाधी ।।२।। एक मुकंद करै उपकार ।। हमरा कहा करै संसारु ।। मेटी जाति हुए दरबारि ।। तुही मुकंद जोग जुग तारि ।।३।। उपजिओ गिआन हूआ परगास ।। करि किरपा लीने कीट दास ।। कहु रविदास अब त्रिसना चूकी ।। जपि मुकंद सेवा ताहु की ।।४।।१।। |
मुकंद मुकंद जपहु संसार ।। बिन मुकंद तन होए अउहार ।। सोई मुकंद मुक्ति का दाता ।। सोई मुकंद हमरा पित माता ।।१।। हे संसार के लोगो ! तुम मुक्ति दाता मुकुन्द अर्थात परमात्मा का जाप करो । मुकुन्द को जपे बिना तुम्हारा शरीर हार जायेगा । 'वही' मुकुन्द मुक्ति का दाता है और 'वही' मुकुन्द हमारा माता-पिता भी है । जीवत मुकंदे मरत मुकंदे ।। ता के सेवक कउ सदा अनंदे ।। रहाउ ।। हे भाई ! तू जीते-जी ( जब मन दुनिया से निर्लेप था ) मुकुन्द का जाप कर और मरते हुए भी ( जब मन दुनिया के मोह बन्धन में फंसा था ) मुकुन्द का ही स्मरण कर । मुकुन्द के सेवक को सदैव आनन्द ही आनन्द है । मुकंद मुकंद हमारे प्रानं ।। जपि मुकंद मस्तक नीसानं ।। सेव मुकंद करै बैरागी ।। सोई मुकंद दुरबल धन लाधी ।।२।। हे भाई ! मुकुन्द ही हमारे प्राणों का आधार है । मुकुन्द का नाम जपने से तेरे मस्तिष्क पर श्रेष्ठ भाग्य का निशान प्रकट हो जायेगा। जिस मुकुन्द की सेवा वैरागी पुरुष करते हैं, 'वही' मुकुन्द श्रेष्ठ धन मुझ दुर्बल जीव को प्राप्त हुआ है । एक मुकंद करै उपकार ।। हमरा कहा करै संसारु ।। मेटी जाति हुए दरबारि ।। तुही मुकंद जोग जुग तारि ।।३।। यदि 'वह' मुकुन्द मेरा उपकार करे तो संसार मेरा क्या बिगाड़ सकता है ? हे लोगो ! अपनी जाति को मिटाकर मैं प्रभु का दरबारी बन गया हूँ । हे मुकुन्द प्रभु ! तुम ही जीव को युगों-युगों से तारने वाले हो । उपजिओ गिआन हूआ परगास ।। करि किरपा लीने कीट दास ।। कहु रविदास अब त्रिसना चूकी ।। जपि मुकंद सेवा ताहु की ।।४।।१।। अब मुझे ब्रह्मज्ञान उत्पन्न होने के कारण नाम-प्रकाश प्राप्त हुआ है । कृपा करके प्रभु ने मुझ कीट के समान तुच्छ जीव को अपना दास बना लिया है । सतिगुरु देव, रविदास जी कहते है कि अब मेरी तृष्णा समाप्त हो गई है और अब मैं मुकुन्द को जपता हूँ और 'उसी' की सेवा करता हूँ । |