पन्ना ८५८
बिलावल बाणी रविदास भगत की
ੴ सतिगुर प्रसादि।।
   
जिह कुल साधु बैसनौ होइ ।।
बरन अबरन रंक नही ईसुरु
बिमल बास जानीऐ जग सोए ।। १।। रहाउ ।।

ब्रहमन बैस सुद अरु ख्यत्री
डोम चंडार मलेछ मन सोए ।।
होए पुनीत भगवंत भजन ते
आप तार तारे कुल दोए ।।१।।
धंन सु गाउ धंन सो ठाउ
धंन पुनीत कुट्मब सभ लोए ।।
जिन पीआ सार रस तजे आन रस
होइ रस मगन डारे बिख खोए ।।२।।
पंडित सूर छत्रपति राजा
भगत बराबर अउरु न कोइ ।।
जैसे पुरैन पात रहै जल समीप
भनि रविदास जनमे जगि ओइ ।।३।।२।।


जिह कुल साधु बैसनौ होइ ।।
बरन अबरन रंक नही ईसुरु बिमल बास जानीऐ जग सोए ।। १।। रहाउ ।।

जिस कुल में वैष्णव साधु पैदा हो जाता है,
वह उच्च या नीच वर्ण का हो, राजा हो या रंक, उसकी पावन सुगन्ध और शोभा सारे जगत में फैल जाती है ।

ब्रहमन बैस सुद अरु ख्यत्री डोम चंडार मलेछ मन सोए ।।
होए पुनीत भगवंत भजन ते आप तार तारे कुल दोए ।।१।।

ब्राह्मणा, वैश्य, शूद्र, क्षत्रिय, डोम, चण्डाल या मलेच्छ ( अपवित्र ) मन वाला कोई भी व्यक्ति क्यों न हो, किन्तु प्रभु भक्ति से वह पवित्र हो जाता है।
वह स्वयं तो भवसागर से पार हो जाता है साथ ही वह अपने मातृवंश और पितृवंश का भी उद्धार कर देता है ।

धंन सु गाउ धंन सो ठाउ धंन पुनीत कुट्मब सभ लोए ।।
जिन पीआ सार रस तजे आन रस होइ रस मगन डारे बिख खोए ।।२।।

धन्य है वह गाँव, धन्य है वह स्थान तथा धन्य और पवित्र है उस कुटुम्ब के सभी लोग
जिसमें किसी भाग्यशाली पुरुष ने सभी भौतिक सुखों को त्याग कर प्रभु-नाम का रस-पान किया है और उसमें मग्न होकर संसार के सभी विषैले दुर्गुणों को नष्ट कर दिया है ।

पंडित सूर छत्रपति राजा भगत बराबर अउरु न कोइ ।।
जैसे पुरैन पात रहै जल समीप भनि रविदास जनमे जगि ओइ ।।३।।२।।

कोई पंडित, शूरवीर अथवा छत्रपति राजा भी भक्त के बराबर नहीं हो सकता।
जैसे कमल का पत्ता सदा जल के समीप होते हुए भी जल से सर्वथा अछूता रहता है, वैसे ही भक्तजन सदा सांसारिक सुखों से दूर रहते हैं। गुरू रविदास जी कहते हैं कि ऐसे भक्तों का जन्म लेना संसार में सफल है ।