असट दसा सिधि कर तलै सब क्रिपा तुमारी ।।१।। तू जानत मै किछु नही भव खंडन राम ।। सगल जीअ सरनागती प्रभ पूरन काम ।।१।। रहाउ ।। जो तेरी सरनागता तिन नाही भारु।। ऊच नीच तुम ते तरे आलज संसारु।।२ कहि रविदास अकथ कथा बहु काए करीजै ।। जैसा तू तैसा तुही किआ उपमा दीजै ।।३।।१।। |
दारिद देख सभ को हसै ऐसी दसा हमारी ।। असट दसा सिधि कर तलै सब क्रिपा तुमारी ।।१।। मेरी दशा एेसी है कि सभी लोग मेरी दरिद्रता को देखकर हँसी उड़ाते हैं, पर अब मुझे अठारह सिद्धियों की प्राप्ति को गई है । हे प्रभु ! यह सब तुम्हारी ही कृपा है । तू जानत मै किछु नही भव खंडन राम ।। सगल जीअ सरनागती प्रभ पूरन काम ।।१।। रहाउ ।। हे संसार को जानने वाले प्रभु ! मैं कुछ नहीं जानता । तुम ही सांसारिक बन्धनों को काटने वाले हो । सभी जीव तुम्हारी ही शरण में आते हैं और आप ही उनके सभी कार्य सम्पूर्ण करते हो । जो तेरी सरनागता तिन नाही भारु।। ऊच नीच तुम ते तरे आलज संसारु।।२ हे प्रभु ! जो तुम्हारी शरण में आते हैं, वे कर्मों के बोझ से मुक्त हो जाते हैं । इस निर्लज्ज संसार में सभी ऊँच-नीच जीव तुम्हारी ही कृपा से मुक्त हो जाते हैं । कहि रविदास अकथ कथा बहु काए करीजै ।। जैसा तू तैसा तुही किआ उपमा दीजै ।।३।।१।। गुरू रविदास जी कहते हैं कि हे प्रभु ! तुम्हारी कथा अकथनीय है अर्थात इसका वर्णन नहीं किया जा सकता । इसलिए अधिक क्या कहा जाये ? तुम जैसे हो वैसे केवल तुम्हीं हो, अन्य कोई नहीं जिससे तुम्हारी उपमा की जा सके । |