करना कूच रहन थिर नाही ।। संग चलत है हम भी चलना ।। दूर गवन सिर ऊपर मरना ।।१।। किआ तू सोया जाग इआना ।। तै जीवन जग सच कर जाना ।।१।। रहाउ ।। जिनि जीउ दीआ सु रिजक अमबरावै ।। सभ घट भीतर हाट चलावै ।। कर बंदगी छाडि मै मेरा ।। हिरदै नाम सम्हारि सवेरा ।।२।। जनम सिरानो पंथ न सवारा ।। सांझ पर दह दिस अंधिआरा ।। कहि रविदास निदानि दिवाने ।। चेतस नाही दुनीआ फन खाने ।।३।। |
जो दिन आवहि सो दिन जाही ।। करना कूच रहन थिर नाही ।। संग चलत है हम भी चलना ।। दूर गवन सिर ऊपर मरना ।।१।। जो दिन आते हैं, वे बीत जाते हैं । इस संसार से सबको एक दिन चले जाना है क्योंकि संसार में स्थिर रहने वाला कोई जीव नही है । हमारे साथी चले जा रहे हैं और हमें भी चले जाना है । हमारी परमार्थी यात्रा बहुत दूर की है और मृत्यु सिर पर मँडरा रही है । किआ तू सोया जाग इआना ।। तै जीवन जग सच कर जाना ।।१।। रहाउ ।। हे मूर्ख ! तू अज्ञानता की नींद में सो रहा है ?, जाग ! तूने इस जीवन और जगत को सत्य समझ रखा है लेकिन यह असत्य है । जिनि जीउ दीआ सु रिजक अमबरावै ।। सभ घट भीतर हाट चलावै ।। कर बंदगी छाडि मै मेरा ।। हिरदै नाम सम्हारि सवेरा ।।२।। जिस परमात्मा ने तुझे जीवन दिया है, 'वह' तेरी जीविका का भी प्रबन्द करता है । परमात्मा घट-घट में बैठा हमारी सभी आवश्यक सामग्रियों का बाजार खोले हुए है, अत: तू 'मै' और 'मेरा' को त्याग और सुबह उठकर हृदय से परमात्मा का नाम जप । जनम सिरानो पंथ न सवारा ।। सांझ पर दह दिस अंधिआरा ।। कहि रविदास निदानि दिवाने ।। चेतस नाही दुनीआ फन खाने ।।३।। हे जीव ! तेरा जीवन बीता जा रहा है और तूने अपना परलोक का मार्ग सँवारा नहीं है । जीवन की संध्या के आते ही दसों दिशाओं में अन्धकार छा जायेगा । गुरू रविदास जी कहते हैं कि हे पगले ! संसार मृत्यु का घर है अर्थात् नाशवान है, तू मोह माया त्याग कर परमात्मा का चिन्तन क्यों नहीं करता ? |