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राग सोरठि बाणी भगत रविदास जी की
ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
   
चमरटा गांठि न जनई ।।
लोग गठावै पनही ।।१।। रहाउ ।।

आर नही जिह तोपउ ।।
नही रांबी ठाउ रोपउ ।।१।।
लोग गंठ गंठ खरा बिगूचा ।।
हउ बिन गांठे जाए पहूचा ।।२।।
रविदास जपै राम नामा ।।
मोहि जम सिउ नाही कामा ।।३।।७।। 

 

चमरटा गांठि न जनई ।। लोग गठावै पनही ।।१।। रहाउ ।।
लोग चमड़े के इस शरीर से बहुत प्रेम करते हैं और इसको सजाने और सँवारने के लिए मेरे पास आते हैं पर मैं चमार जूती गाँठना नहीं जानता ।

आर नही जिह तोपउ ।। नही रांबी ठाउ रोपउ ।।१।।
मेरे पास तेज बुद्धि रूपी सूआ भी नहीं है जिससे मैं टाँका लगाऊँ
और न ही काँट-छाँट करने के लिए धोखे से भरी विध्या वाली कोई रांबी है जिससे मैं शरीर रूपी जूती को जोड़ लगाऊँ ।

लोग गंठ गंठ खरा बिगूचा ।। हउ बिन गांठे जाए पहूचा ।।२।।
लोग शरीर रूपी जूती से झूठी प्रीत जोड़ रहे हैं, और इसको गाँठ-गाँठकर बिलकुल बर्बाद हो गये हैं किंतु मैं तो इसको गाँठे बिना, भाव मोह माया को त्याग कर प्रभु से मिल गिया हँू ।

रविदास जपै राम नामा ।। मोहि जम सिउ नाही कामा ।।३।।७।।
सतिगुरू रविदास जी कहते हैं कि मैंने राम-नाम से प्रीति जोड़ी है।
अब मुझे यमदूत से कोई भय नहीं है ।