जल की भीति पवन का थ्मभा रकत बूंद का गारा ।।
हाड मास नाड़ी को पिंजर पंखी बसै बिचारा ।।१।।
जल की दीवार, हवा का खम्भा तथा रक्त और वीर्य के मिश्रण से यह हाड़, मांस और नाड़ियों का पिंजरा, मानव शरीर बना हुआ है, अर्थात पाँच तत्वों से बने शरीर में आत्मा का बसेरा एक पक्षी के समान है ।
प्रानी किआ मेरा किआ तेरा ।। जैसे तरवर पंख बसेरा ।। १।। रहाउ ।।
हे प्राणी! इस संसार में क्या मेरा और क्या तेरा है? इस संसार में जीव का निवास उस पक्षी के समान है जो रात को वृक्ष पर बसेरा कर लेता हैं और सुबहा होते ही उड़ जाता हैं।
राखहु कंध उसारहु नीवां ।। साढे तीन हाथ तेरी सीवां ।।२।।
जीव संसार में गहरी नींव खोदकर, उँची-उँची दीवारें खड़ी करते है और सुंदर महल बनवाते है, परंतु मृत्यु के बाद केवल साढ़े तीन हाथ जमीन ही उसे मिलती है।
बंके बाल पाग सिरि डेरी ।। इहु तन होएगो भसम की ढेरी ।।३।।
जीव परमात्मा को भुलाकर सुंदर केश सँवारता है और सिर पर अभिमान पूर्वक टेढ़ी पगड़ी बाँधता है पर यह शरीर अन्त में जलकर राख की ढेर बन जाता है ।
ऊचे मंदर सुंदर नारी ।। राम नाम बिन बाजी हारी ।।४।।
जीव के पास कितने भी ऊँचे महल व सुन्दर नारी हो पर प्रभु सिमरन के बिना हम जिन्दगी की बाज़ी हार जाते हैं।
मेरी जाति कमीनी पाति कमीनी ओछा जन्म हमारा ।।
तुम सरनागति राजा राम चंद कहि रविदास चमारा ।।५।।६।।
सतिगुरू रविदास जी महाराज कहते हैं कि मेरी जाति निम्न है, पाति भी नीची है, और मैंने एक तुच्छ कुल में जन्म लिया है ।
हे प्रभु! अब मैं आपकी शरण में आ गया हूँ आप मुझ पर अपनी कृपा करें।
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