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गूजरी श्री रविदास जी के पदे घर ३
ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
   
दूध त बछरै थनहु बिटारिओ ।।१।।
फूलु भवरि जल मीन बिगारिओ ।।
माई गोबिंद पूजा कहा लै चरावउ ।।
अवरु न फूल अनूप न पावउ ।।१।।रहाउ ।।

मैलागर बेह्रे है भुइअंगा ।।
बिखु अम्रित बसहि इक संगा ।।२।।
धुप दीप नईबेदहि बासा ।।
कैसे पूज करहि तेरी दासा ।।३।।
तन मन अरपउ पूज चरावउ ।।
गुर परसादि निरंजन पावउ ।।४।।
पूजा अर्चा आहि न तोरी ।।
कहि रविदास कवन गति मोरी ।।५।।

 
दूध त बछरै थनहु बिटारिओ ।।१।। फूलु भवरि जल मीन बिगारिओ ।।
दूध को तो बछड़े ने थनों में ही जूठा कर दिया, फूल को भँवरे ने जूठा कर दिया और पानी को मछली ने अपवित्र कर दिया ।

माई गोबिंद पूजा कहा लै चरावउ ।। अवरु न फूल अनूप न पावउ ।।१।।रहाउ ।।

हे गोबिन्द ! आपकी पूजा के लिए मैं कहाँ से और कौन सी पवित्र वस्तु अर्पित करुँ ? मुझे तो आपको अर्पित करने योग्य कोई अनुपम फुल भी नहीं मिलता ।

मैलागर बेह्रे है भुइअंगा ।। बिखु अम्रित बसहि इक संगा ।।२।।
चन्दन के वृक्ष को भी सर्पों ने लपेट रखा है । यहाँ विष और अमृत एक साथ बस रहे हैं इसलिए संग-दोष के कारण चंदन भी आपकी पूजा योग्य नहीं हैं ।

धुप दीप नईबेदहि बासा ।। कैसे पूज करहि तेरी दासा ।।३।।

धूप देना, दीपक जलाना और छत्तीस व्यंजनों का भोग रखकर पूजा करने वाले को तो पहले ही सुगन्ध आ जाती है इसलिए यह सामग्री भी जूठी है । हे स्वामी ! अब तुम्हारा दास तुम्हारी पूजा कैसे करे ?

तन मन अरपउ पूज चरावउ ।। गुर परसादि निरंजन पावउ ।।४।।
हे निरंजन प्रभु ! मैंने आपकी पूजा में अपना तन-मन अर्पित कर दिया है, इसलिए गुरू की कृपा से मुझे आपकी प्राप्ति होगी ।

पूजा अर्चा आहि न तोरी ।। कहि रविदास कवन गति मोरी ।।५।।
गुरू रविदास जी कहते हैं कि मेरे तन-मन के अलावा आपकी पूजा-अर्चना के लिए कोई भी पवित्र सामग्री नहीं है । हे प्रभु ! इस सच्ची पूजा के बिना मेरी गति कैसे होगी ?