देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरत है ।। १ ।। रहाउ ।। जब कछु पावै तब गरब करत है ।। माया गई तब रोवन लगत है ।। १ ।। मन बच क्रम रस कसहि लुभाना ।। बिनसि गया जाय कहुँ समाना ।।२।। कहि रविदास बाजी जग भाई ।। बाजीगर सउ मोहे प्रीत बन आई ।।३।।६।। |
माटी को पुतरा कैसे नचत है ।। देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरत है ।। १ ।। रहाउ ।। यह पाँच तत्व रुपी मिट्टी का पुतला ( मनुष्य ) मोह-माया में फँसकर सांसारिक कार्य-कलापों में नाच रहा है। यह मोह-माया के प्रभाव में फँसकर देखता, सुनता, बोलता और दौड़ता है । जब कछु पावै तब गरब करत है ।। माया गई तब रोवन लगत है ।। १ ।। जब मनुष्य कुछ प्राप्त कर लेता है तब यह अभिमान करता है और जब माया चली जाती है, तब रोने लगता है अर्थात उसे अपने लुट जाने का अहसास होता है । मन बच क्रम रस कसहि लुभाना ।। बिनसि गया जाय कहुँ समाना ।।२।। सांसारिक विषय-वासनाओं के लोभ में पड़कर जीव मन, वचन और कर्म से माया का ही वीचार करता है। उसे यह भी ज्ञान नही कि मरने के बाद वह किस योनि में जाएगा । कहि रविदास बाजी जग भाई ।। बाजीगर सउ मोहे प्रीत बन आई ।।३।।६।। गुरू रविदास जी कहते हैं कि यह संसार बाजीगर की बाजी की तरह झुठा है, पर मेरी प्रीति तो इस खेल को करने वाले परमात्मा से लग गई है । |