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आसा बाणी श्री रविदास जीउ की
ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
   
तुम चंदन हम इरंड बापुरे संग तुमारे बासा ।।
नीच रूख ते ऊच भए है गंध सुगंध निवासा ।। १।।
माधउ सतसंगति सरन तुम्हारी ।। हम अउगन तुम्ह उपकारी ।।१।। रहाउ ।।
तुम मखतूल सुपेद सपीअल हम बपुरे जस कीरा ।।
सतसंगति मिल रहीऐ माधउ जैसे मधुप मखीरा ।।२।।
जाती ओछा पाती ओछा ओछा जन्म हमारा ।।
राजा राम की सेव न कीनी कहि रविदास चमारा ।।३।।
मखतूल- रेशम | सुपेद-सफ़ेद | सपीअल-पीला | मधुप मखीरा -मधु मक्खियां | ओछा -नीच
तुम चंदन हम इरंड बापुरे संग तुमारे बासा ।।
नीच रूख ते ऊच भए है गंध सुगंध निवासा ।। १।।

हे प्रभु ! तुम चन्दन के सुगन्धित वृक्ष हो और हम संसारिक जीव बेचारे एरंड के गंधहीन और गुणहीन पौधे हैं, किंतु आपकी कृपा से हमें आपके चरणों की संगति प्राप्त हुई है । आपकी सुगंध हमारे अंदर बस गई है, अब हम नीच गंधहीन पौधे से ऊँचे सुगन्ध-युक्त वृक्ष हो गए हैं ।

माधउ सतसंगति सरन तुम्हारी ।। हम अउगन तुम्ह उपकारी ।।१।। रहाउ ।।
हे माधव ! हमने आपकी प्राप्ति के लिए सतसंगत की शरण ली है । हम अवगुणी हैं किंतु आप परोपकारी हो ।
तुम मखतूल सुपेद सपीअल हम बपुरे जस कीरा ।।
सतसंगति मिल रहीऐ माधउ जैसे मधुप मखीरा ।।२।।

हे माधव प्रभु ! तुम सफ़ेद, पीले मुलायम रेशम के समान हो, किंतु हम बेचारे अवगुणों से भरे कीड़ो के समान हैं । कृपा करो कि हम आपकी सतसंगति में मधु मक्खियों की तरह मिलकर रहें ।

जाती ओछा पाती ओछा ओछा जन्म हमारा ।।
राजा राम की सेव न कीनी कहि रविदास चमारा ।।३।।

चमार जाति में जन्म ले कर गुरू रविदास जी कहते हैं कि लोगों की दृष्टि में हमारी जाति, पंत्ति तथा जन्म भी नीच है क्योंकि हमने मनुष्य योनी में जन्म लेकर भी परमात्मा रूपी राजा की सेवा नहीं की ।