पंच दोख असाध जा महि ता की केतक आस ।।१।। माधो अबिदिआ हित कीन ।। विवेक दीप मलीन ।।१।। रहाउ ।। त्रीगद जोनि अचेत स्मभव पुंन पाप असोच ।। मानुखा अवतार दुलभ तही संगति पोच ।।२।। जीअ जंत जहा जहा लग कर्म के वस जाए ।। काल फास अबध लागे कछु न चलै उपाऐ ।।३।। रविदास दास उदास तज भ्रम तपन तप गुर ज्ञान ।। भगत जन भै हरन परमानंद करहो निदान ।।४।।१।। |
अज्ञानता से जीव के विचार मलीन हो गए है म्रिग मीन भ्रिंग पतंग कुंचर एक दोख बिनास।। पंच दोख असाध जा महि ता की केतक आस ।।१।। हिरण, मछली, भँवरा, पतंगा और हाथी एक-एक दोष के कारण नष्ट हो जाते हैं, परंतु मनुष्य में पाँच विकार ( काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रुपी आसाध्य रोग हैं, जिसके फलस्वरुप उसके बचने की आशा कब तक की जा सकती हैं? माधो अबिदिआ हित कीन ।। विवेक दीप मलीन ।।१।। रहाउ ।। हे माधव ! मनुष्य अविध्या से प्रेम करने लगा है उसका ज्ञान रूपी दीपक मंद हो गया है । त्रीगद जोनि अचेत स्मभव पुंन पाप असोच ।। मानुखा अवतार दुलभ तही संगति पोच ।।२।। हीन जोनि ( साँप, कुत्ता, कौआ, सुअर, भैसा ) आदि जोनि विवेकहीन होती हैं इसलिए वे पाप-पुण्य या अच्छे-बुरे कमों का विचार नहीं कर सकती, पर मनुष्य योनि दुर्लभ है !, इसे पाकर भी मनुष्य विकारों की संगति में लिप्त रहता है । जीअ जंत जहा जहा लग कर्म के वस जाए ।। काल फास अबध लागे कछु न चलै उपाऐ ।।३।। जीव-जन्तु जहाँ-जहाँ भी हैं वे अपने पूर्व कर्मानुसार ही इन योनियों में आते हैं और जब जीव पर काल की फाँसी लगती है तो तब उससे बचने का कोई उपाय नहीं चलता । रविदास दास उदास तज भ्रम तपन तप गुर ज्ञान ।। भगत जन भै हरन परमानंद करहो निदान ।।४।।१।। दास भाव से गुरु रविदास जी कहते हैं कि हे जीव ! तू उदासीनता और भ्रम को त्याग दे और तपों में श्रेष्ठ तप ( गुरू ज्ञान ) की तपस्या कर, तभी भक्तों का भय हरण करनेवाला परमानन्द प्रभु तेरा उपचार करेगा । |