अंक : 1252
सारंग बाणी नामदेउ जी की ॥
एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
दास अनिंन मेरो निज रूप ॥
दरसन निमख ताप त्रई मोचन
परसत मुकति करत ग्रह कूप ॥१॥ रहाउ ॥

मेरी बांधी भगतु छडावै
बांधै भगतु न छूटै मोहि ॥
एक समै मो कउ गहि बांधै
तउ फुनि मो पै जबाब न होइ ॥१॥
मै गुन बंध सगल की जीवनि
मेरी जीवनि मेरे दास ॥
नामदेव जा के जीअ ऐसी
तैसो ता कै प्रेम प्रगास ॥२॥३॥

ਅਨਿੰਨ—
ਦਾਸ ਅਨਿੰਨ ਮੇਰੋ ਨਿਜ ਰੂਪ ॥