भगति दानु दीजै जाचहि संत जन ॥१॥ रहाउ ॥ जां चै घरि दिग दिसै सराइचा बैकुंठ भवन चित्रसाला सपत लोक सामानि पूरीअले ॥ जां चै घरि लछिमी कुआरी चंदु सूरजु दीवड़े कउतकु कालु बपुड़ा कोटवालु सु करा सिरी ॥ सु ऐसा राजा स्री नरहरी ॥१॥ जां चै घरि कुलालु ब्रहमा चतुर मुखु डांवड़ा जिनि बिस्व संसारु राचीले ॥ जां कै घरि ईसरु बावला जगत गुरू तत सारखा गिआनु भाखीले ॥ पापु पुंनु जां चै डांगीआ दुआरै चित्र गुपतु लेखीआ ॥ धरम राइ परुली प्रतिहारु ॥ सो ऐसा राजा स्री गोपालु ॥२॥ जां चै घरि गण गंधरब रिखी बपुड़े ढाढीआ गावंत आछै ॥ सरब सासत्र बहु रूपीआ अनगरूआ आखाड़ा मंडलीक बोल बोलहि काछे ॥ चउर ढूल जां चै है पवणु ॥ चेरी सकति जीति ले भवणु ॥ अंड टूक जा चै भसमती ॥ सो ऐसा राजा त्रिभवण पती ॥३॥ जां चै घरि कूरमा पालु सहस्र फनी बासकु सेज वालूआ ॥ अठारह भार बनासपती मालणी छिनवै करोड़ी मेघ माला पाणीहारीआ ॥ नख प्रसेव जा चै सुरसरी ॥ सपत समुंद जां चै घड़थली ॥ एते जीअ जां चै वरतणी ॥ सो ऐसा राजा त्रिभवण धणी ॥४॥ जां चै घरि निकट वरती अरजनु ध्रू प्रहलादु अमबरीकु नारदु नेजै सिध बुध गण गंधरब बानवै हेला ॥ एते जीअ जां चै हहि घरी ॥ सरब बिआपिक अंतर हरी ॥ प्रणवै नामदेउ तां ची आणि ॥ सगल भगत जा चै नीसाणि ॥५॥१॥ |
ਸੇਵੀਲੇ— |
ਸੇਵੀਲੇ ਗੋਪਾਲ ਰਾਇ ਅਕੁਲ ਨਿਰੰਜਨ ॥
ਭਗਤਿ ਦਾਨੁ ਦੀਜੈ ਜਾਚਹਿ ਸੰਤ ਜਨ ॥ ੧ ॥ ਰਹਾਉ ॥ |