अंक : 1292
रागु मलार बाणी भगत नामदेव जीउ की ॥
एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
सेवीले गोपाल राइ अकुल निरंजन ॥
भगति दानु दीजै जाचहि संत जन ॥१॥ रहाउ ॥

जां चै घरि दिग दिसै सराइचा बैकुंठ भवन चित्रसाला सपत लोक सामानि पूरीअले ॥
जां चै घरि लछिमी कुआरी चंदु सूरजु दीवड़े कउतकु कालु बपुड़ा कोटवालु सु करा सिरी ॥
सु ऐसा राजा स्री नरहरी ॥१॥
जां चै घरि कुलालु ब्रहमा चतुर मुखु डांवड़ा जिनि बिस्व संसारु राचीले ॥
जां कै घरि ईसरु बावला जगत गुरू तत सारखा गिआनु भाखीले ॥
पापु पुंनु जां चै डांगीआ दुआरै चित्र गुपतु लेखीआ ॥
धरम राइ परुली प्रतिहारु ॥
सो ऐसा राजा स्री गोपालु ॥२॥
जां चै घरि गण गंधरब रिखी बपुड़े ढाढीआ गावंत आछै ॥
सरब सासत्र बहु रूपीआ अनगरूआ आखाड़ा मंडलीक बोल बोलहि काछे ॥
चउर ढूल जां चै है पवणु ॥
चेरी सकति जीति ले भवणु ॥
अंड टूक जा चै भसमती ॥
सो ऐसा राजा त्रिभवण पती ॥३॥
जां चै घरि कूरमा पालु सहस्र फनी बासकु सेज वालूआ ॥
अठारह भार बनासपती मालणी छिनवै करोड़ी मेघ माला पाणीहारीआ ॥
नख प्रसेव जा चै सुरसरी ॥
सपत समुंद जां चै घड़थली ॥
एते जीअ जां चै वरतणी ॥
सो ऐसा राजा त्रिभवण धणी ॥४॥
जां चै घरि निकट वरती अरजनु ध्रू प्रहलादु अमबरीकु नारदु नेजै सिध बुध गण गंधरब बानवै हेला ॥
एते जीअ जां चै हहि घरी ॥
सरब बिआपिक अंतर हरी ॥
प्रणवै नामदेउ तां ची आणि ॥
सगल भगत जा चै नीसाणि ॥५॥१॥
ਸੇਵੀਲੇ—
ਸੇਵੀਲੇ ਗੋਪਾਲ ਰਾਇ ਅਕੁਲ ਨਿਰੰਜਨ ॥ ਭਗਤਿ ਦਾਨੁ ਦੀਜੈ ਜਾਚਹਿ ਸੰਤ ਜਨ ॥ ੧ ॥ ਰਹਾਉ ॥