पर नारी सिउ घालै धंधा ॥ जैसे सिमबलु देखि सूआ बिगसाना ॥ अंत की बार मूआ लपटाना ॥१॥ पापी का घरु अगने माहि ॥ जलत रहै मिटवै कब नाहि ॥१॥ रहाउ ॥ हरि की भगति न देखै जाइ ॥ मारगु छोडि अमारगि पाइ ॥ मूलहु भूला आवै जाइ ॥ अम्रितु डारि लादि बिखु खाइ ॥२॥ जिउ बेस्वा के परै अखारा ॥ कापरु पहिरि करहि सींगारा ॥ पूरे ताल निहाले सास ॥ वा के गले जम का है फास ॥३॥ जा के मसतकि लिखिओ करमा ॥ सो भजि परि है गुर की सरना ॥ कहत नामदेउ इहु बीचारु ॥ इन बिधि संतहु उतरहु पारि ॥४॥२॥८॥ |
ਘਾਲੈ ਧੰਧਾ— |
ਘਰ ਕੀ ਨਾਰਿ ਤਿਆਗੈ ਅੰਧਾ ॥ ਪਰ ਨਾਰੀ ਸਿਉ ਘਾਲੈ ਧੰਧਾ ॥ ਜੈਸੇ ਸਿੰਬਲੁ ਦੇਖਿ ਸੂਆ ਬਿਗਸਾਨਾ ॥ ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਮੂਆ ਲਪਟਾਨਾ ॥੧॥ |