अंक : 1165
भैरउ बाणी नामदेउ जीउ की घरु २
एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
घर की नारि तिआगै अंधा ॥
पर नारी सिउ घालै धंधा ॥
जैसे सिमबलु देखि सूआ बिगसाना ॥
अंत की बार मूआ लपटाना ॥१॥
पापी का घरु अगने माहि ॥
जलत रहै मिटवै कब नाहि ॥१॥ रहाउ ॥

हरि की भगति न देखै जाइ ॥
मारगु छोडि अमारगि पाइ ॥
मूलहु भूला आवै जाइ ॥
अम्रितु डारि लादि बिखु खाइ ॥२॥
जिउ बेस्वा के परै अखारा ॥
कापरु पहिरि करहि सींगारा ॥
पूरे ताल निहाले सास ॥
वा के गले जम का है फास ॥३॥
जा के मसतकि लिखिओ करमा ॥
सो भजि परि है गुर की सरना ॥
कहत नामदेउ इहु बीचारु ॥
इन बिधि संतहु उतरहु पारि ॥४॥२॥८॥
ਘਾਲੈ ਧੰਧਾ—
ਘਰ ਕੀ ਨਾਰਿ ਤਿਆਗੈ ਅੰਧਾ ॥ ਪਰ ਨਾਰੀ ਸਿਉ ਘਾਲੈ ਧੰਧਾ ॥
ਜੈਸੇ ਸਿੰਬਲੁ ਦੇਖਿ ਸੂਆ ਬਿਗਸਾਨਾ ॥ ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਮੂਆ ਲਪਟਾਨਾ ॥੧॥