अंक : 1105
कबीर का सबदु रागु मारू बाणी नामदेउ जी की
          एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
     
चारि मुकति चारै सिधि मिलि कै
दूलह प्रभ की सरनि परिओ॥
मुकति भइओ चउहूं जुग जानिओ
जसु कीरति माथै छत्रु धरिओ॥१॥
राजा राम जपत को को न तरिओ॥
गुर उपदेसि साध की संगति
भगतु भगतु ता को नामु परिओ॥१॥रहाउ॥

संख चक्र माला तिलकु बिराजित
देखि प्रतापु जमु डरिओ॥
निरभउ भए राम बल गरजित
जनम मरन संताप हिरिओ॥२॥
अमबरीक कउ दीओ अभै पदु
राजु भभीखन अधिक करिओ॥
नउ निधि ठाकुरि दई सुदामै
ध्रूअ अटलु अजहू न टरिओ॥३॥
भगत हेति मारिओ हरनाखसु
नरसिंघ रूप होइ देह धरिओ ॥
नामा कहै भगति बसि केसव
अजहूं बलि के दुआर खरो॥४॥१॥
ਚਾਰਿ ਮੁਕਤਿ—
ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਜਪਤ ਕੋ ਕੋ ਨ ਤਰਿਓ ॥