अंक : 857
रागु गोंड बाणी नामदेउ जी की घरु १
   एक ओंकार सतिगुर प्रसादि॥
 
असुमेध जगने॥
तुला पुरख दाने॥
प्राग इसनाने॥१॥

तउ न पुजहि हरि कीरति नामा॥
अपुने रामहि भजु
रे मन आलसीआ ॥१॥ रहाउ ॥

गइआ पिंडु भरता ॥
बनारसि असि बसता ॥
मुखि बेद चतुर पड़ता ॥२॥
सगल धरम अछिता॥
गुर गिआन इंद्री द्रिड़ता॥
खटु करम सहित रहता॥३॥
सिवा सकति स्मबादं॥
मन छोडि छोडि सगल भेदं ॥
सिमरि सिमरि गोबिंदं ॥
भजु नामा तरसि भव सिंधं ॥४॥१॥

ਅਸੁਮੇਧ—

ਅਸੁਮੇਧ ਜਗਨੇ ॥ ਤੁਲਾ ਪੁਰਖ ਦਾਨੇ ॥ ਪ੍ਰਾਗ ਇਸਨਾਨੇ ॥੧॥