अंक : 692-93
धनासरी बाणी भगत नामदेव जी की 
       एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
 
गहरी करि कै नीव खुदाई ऊपरि मंडप छाए ॥
मारकंडे ते को अधिकाई जिनि त्रिण धरि मूंड बलाए॥१॥
हमरो करता रामु सनेही॥ 
काहे रे नर गरबु करत हहु बिनसि जाइ झूठी देही॥१॥रहाउ॥ 
मेरी मेरी कैरउ करते दुरजोधन से भाई॥
बारह जोजन छत्रु चलै था देही गिरझन खाई॥२॥  
सरब सोइन की लंका होती रावन से अधिकाई॥
कहा भइओ दरि बांधे हाथी खिन महि भई पराई॥३॥
दुरबासा सिउ करत ठगउरी जादव ए फल पाए ॥ 
क्रिपा करी जन अपुने ऊपर नामदेउ हरि गुन गाए॥४॥१॥

 
ਹਮਰੋ ਕਰਤਾ ਰਾਮੁ ਸਨੇਹੀ ॥