अंक : 656
सोरठि घर ३॥
 
अणमड़िआ मंदलु बाजै ॥
बिनु सावण घनहरु गाजै॥
बादल बिनु बरखा होई ॥ जउ ततु बिचारै कोई ॥१॥
मो कउ मिलिओ रामु सनेही ॥
जिह मिलिऐ देह सुदेही ॥१॥ रहाउ॥

मिलि पारस कंचनु होइआ ॥
मुख मनसा रतनु परोइआ ॥
निज भाउ भइआ भ्रमु भागा ॥
गुर पूछे मनु पतीआगा ॥२॥
जल भीतरि कुमभ समानिआ ॥
सभ रामु एकु करि जानिआ ॥
गुर चेले है मनु मानिआ ॥
जन नामै ततु पछानिआ॥३॥३॥

ਮੋ ਕਉ ਮਿਲਿਓ ਰਾਮੁ ਸਨੇਹੀ ॥ ਜਿਹ ਮਿਲਿਐ ਦੇਹ ਸੁਦੇਹੀ ॥ ੧ ॥ ਰਹਾਉ ॥