पंचहु का मिट नावउ॥ सतरि दोइ भरे अम्रित सरि बिखु कउ मारि कढावउ॥१॥ पाछै बहुरि न आवनु पावउ ॥ अम्रित बाणी घट ते उचरउ आतम कउ समझावउ॥१॥रहाउ॥ बजर कुठारु मोहि है छीनां करि मिंनति लगि पावउ ॥ संतन के हम उलटे सेवक भगतन ते डरपावउ॥२॥ इह संसार ते तब ही छूटउ जउ माइआ नह लपटावउ ॥ माया नामु गरभ जोनि का तिह तजि दरसनु पावउ ॥३॥ इतु करि भगति करहि जो जन तिन भउ सगल चुकाईऐ ॥ कहत नामदेउ बाहरि किआ भरमहु इह संजम हरि पाईऐ॥४॥२॥ |
ਦਸ ਬੈਰਾਗਨਿ ਮੋਹਿ ਬਸਿ ਕੀਨੀ ਪੰਚਹੁ ਕਾ ਮਿਟ ਨਾਵਉ ॥ |