अंक : 693
धनासरी बाणी भगत नामदेव जी की 
       एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
   
दस बैरागनि मोहि बसि कीन्ही
पंचहु का मिट नावउ॥
सतरि दोइ भरे अम्रित सरि
बिखु कउ मारि कढावउ॥१॥
पाछै बहुरि न आवनु पावउ ॥
अम्रित बाणी घट ते उचरउ
आतम कउ समझावउ॥१॥रहाउ॥

बजर कुठारु मोहि है छीनां
करि मिंनति लगि पावउ ॥
संतन के हम उलटे सेवक
भगतन ते डरपावउ॥२॥
इह संसार ते तब ही छूटउ
जउ माइआ नह लपटावउ ॥
माया नामु गरभ जोनि का
तिह तजि दरसनु पावउ ॥३॥
इतु करि भगति करहि जो जन
तिन भउ सगल चुकाईऐ ॥
कहत नामदेउ बाहरि किआ भरमहु
इह संजम हरि पाईऐ॥४॥२॥

 
ਦਸ ਬੈਰਾਗਨਿ ਮੋਹਿ ਬਸਿ ਕੀਨੀ ਪੰਚਹੁ ਕਾ ਮਿਟ ਨਾਵਉ ॥