अंक : 656
रागु सोरठि बाणी भगत नामदे जी की घरु २
एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
 
पाड़ पड़ोसणि पूछि ले नामा का पहि छानि छवाई हो ॥
तो पहि दुगणी मजूरी दैहउ मो कउ बेढी देहु बताई हो ॥१॥
री बाई बेढी देनु न जाई ॥
देखु बेढी रहिओ समाई ॥
हमारै बेढी प्रान अधारा ॥१॥ रहाउ॥

बेढी प्रीति मजूरी मांगै जउ कोऊ छानि छवावै हो ॥
लोग कुट्मब सभहु ते तोरै तउ आपन बेढी आवै हो ॥२॥
ऐसो बेढी बरनि न साकउ सभ अंतर सभ ठांई हो ॥
गूंगै महा अम्रित रसु चाखिआ पूछे कहनु न जाई हो ॥३॥
बेढी के गुण सुनि री बाई जलधि बांधि ध्रू थापिओ हो ॥
नामे के सुआमी सीअ बहोरी लंक भभीखण आपिओ हो ॥४॥२॥

ਪਾੜ ਪੜੋਸਣਿ ਪੂਛਿ ਲੇ ਨਾਮਾ ਕਾ ਪਹਿ ਛਾਨਿ ਛਵਾਈ ਹੋ ॥