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सलोक
   
हरि सो हीरा छाडि के करहि आन की आस ।।
ते नर दोजक जाहिगे सति भाखै रविदास ।।

 
जो लोग परमात्मा का नाम, जो कि हीरे जैसा है, को छोड कर और पदार्थों से सुख: की आशा करते है वह सदा दुख: ही पाते है - यह सच्ची बात रविदास जी बताते हैं ।