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राग सोरठि बाणी भगत रविदास जी की
ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
   
जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा ।।
जउ तुम चंद तउ हम भए है चकोरा ।।१।।
माधवे तुम न तोरहु तउ हम नही तोरहि ।।
तुम सिउ तोरि कवन सिउ जोरहि ।१। रहाउ ।।

जउ तुम दीवरा तउ हम बाती ।।
जउ तुम तीर्थ तउ हम जाती ।।२।।
साची प्रीति हम तुम सिउ जोरी ।।
तुम सिउ जोरि अवर संग तोरी ।।३।।
जह जह जाउ तहा तेरी सेवा ।।
तुम सो ठाकुर अउर न देवा ।।४।।
तुमरे भजन कटहि जम फांसा ।।
भगति हेत गावै रविदासा ।।५।।

जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा ।। जउ तुम चंद तउ हम भए है चकोरा ।।१।।
हे प्रभु! यदि तुम सुन्दर हरे-भरे पहाड़ हो तो मैं उस पर रहने वाला तुम्हारा मोर हूँ ।
अर्थात् मेरी प्रीति आपसे मोर और चकोर के समान है ।

माधवे तुम न तोरहु तउ हम नही तोरहि ।। तुम सिउ तोरि कवन सिउ जोरहि ।१। रहाउ।

हे प्रभु! यदि तुम मेरे साथ प्रीति तोड़ भी दो तो भी मैं इसे नहीं तोडूँगा, क्योंकि तुमसे प्रीति तोड़कर फिर मैं किसके साथ जोडूँगा ?

जउ तुम दीवरा तउ हम बाती ।। जउ तुम तीर्थ तउ हम जाती ।।२।।

यदि तुम दीपक हो तो मैं तुम्हारी बाती के समान हूँ और यदि तुम तीर्थ हो तो मैं तुम्हारा यात्री हूँ।

साची प्रीति हम तुम सिउ जोरी ।। तुम सिउ जोरि अवर संग तोरी ।।३।।
हे प्रभु! सच्ची प्रीति मैंने तुम्हारे साथ ही जोड़ी है । तुम्हारे साथ प्रीति जोड़ कर अन्य सबसे तोड़ दी है ।

जह जह जाउ तहा तेरी सेवा ।। तुम सो ठाकुर अउर न देवा ।।४।।
हे ठाकुर! मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ, केवल तुम्हारी ही सेवा और सिमरन करता हूँ ।
तुम्हारे बराबर अन्य कोई देवता नहीं है ।

तुमरे भजन कटहि जम फांसा ।। भगति हेत गावै रविदासा ।।५।।
हे प्रभु ! तुम्हारे भजन करने से यम की फाँसी कट जाती है ।
सतिगुरू रविदास जी महाराज प्रेमा-भक्ति के लिए प्रभु की माहिमा का गुण-गाण करते हैं।