हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे ।। १ ।। रहाउ ।। हरि के नाम कबीर उजागर ।। जन्म जन्म के काटे कागर ।।१।। निमत नामदेउ दूध पीआया ।। तउ जग जन्म संकट नही आया ।।२।। जन रविदास राम रंग राता ।। इउ गुर प्रसादि नर्क नही जाता ।। ३।। ५ ।। |
निसतरि -अच्छी तरहा से | उजागर-मशहूर | कागर-कागज, ( हिसाब-किताब ) | निमत- हरि कृपा स |
हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे ।। हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे ।। १ ।। रहाउ ।। हरि-हरि सिमरन करने से प्रभु के भक्तजन संसार-सागर से मुक्त हुए हैं, मुक्त हो रहे हैं और मुक्त होते रहेंगे । परमात्मा का हरि नाम हृदय को उज्जवल करने वाला है । हरि के नाम कबीर उजागर ।। जन्म जन्म के काटे कागर ।।१।। हरि-नाम का सिमरन करके कबीर जी का नाम विख्यात हुआ और उनके जन्म-जन्मान्तरों के कर्मों के हिसाब-किताब कट गए । निमत नामदेउ दूध पीआया ।। तउ जग जन्म संकट नही आया ।।२।। नामदेव जी ने प्रेमा-भक्ति से प्रभु ( ठाकुर ) को दुध पिलाया, तभी तो वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो गए । जन रविदास राम रंग राता ।। इउ गुर प्रसादि नर्क नही जाता ।। ३।। ५ ।। गुरू रविदास जी कहते हैं कि मैं प्रभु के प्रेम-रंग मे रंग गया हूँ और गुरू की इसी कृपा से मुझे नर्क नहीं जाना पड़ेगा । ( भाव प्रभु भक्ति करने वाले सादा सुखी रहते हैं ) |