अंक : 1350
प्रभाती॥
 
अकुल पुरख इकु चलितु उपाइआ ॥
घटि घटि अंतरि ब्रहमु लुकाइआ ॥१॥
जीअ की जोति न जानै कोई॥
तै मै कीआ सु मालूमु होई ॥१॥रहाउ॥

जिउ प्रगासिआ माटी कुमभेउ ॥
आप ही करता बीठुलु देउ॥२॥
जीअ का बंधनु करमु बिआपै॥
जो किछु कीआ सु आपै आपै॥३॥
प्रणवति नामदेउ इहु जीउ चितवै सु लहै॥
अमरु होइ सद आकुल रहै॥४॥३॥
ਕੁ-ਧਰਤੀ ।
ਅਕੁਲ ਪੁਰਖ ਇਕੁ ਚਲਿਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥ ਘਟਿ ਘਟਿ ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਲੁਕਾਇਆ ॥੧॥