अंक : 973
बाणी नामदेउ जीउ की रामकली घरु १
          एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
माइ न होती बापु न होता
करमु न होती काइआ॥
हम नही होते तुम नही होते
कवनु कहां ते आइआ॥१॥
राम कोइ न किस ही केरा॥
जैसे तरवरि पंखि बसेरा॥१॥रहाउ॥

चंदु न होता सूरु न होता
पानी पवनु मिलाइआ॥
सासतु न होता बेदु न होता
करमु कहां ते आइआ॥२॥
खेचर भूचर तुलसी माला
गुर परसादी पाइआ ॥
नामा प्रणवै परम ततु है
सतिगुर होइ लखाइआ॥३॥३॥

ਪਦਅਰਥ:-
ਮਾਇ ਨ ਹੋਤੀ ਬਾਪੁ ਨ ਹੋਤਾ ਕਰਮੁ ਨ ਹੋਤੀ ਕਾਇਆ ॥