अंक : 972
बाणी नामदेउ जीउ की रामकली घरु १
          एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
बेद पुरान सासत्र आनंता गीत कबित न गावउगो॥ 
अखंड मंडल निरंकार महि अनहद बेनु बजावउगो ॥१॥
बैरागी रामहि गावउगो ॥
सबदि अतीत अनाहदि राता आकुल कै घरि जाउगो ॥१॥रहाउ॥

इड़ा पिंगुला अउरु सुखमना पउनै बंधि रहाउगो ॥
चंदु सूरजु दुइ सम करि राखउ ब्रहम जोति मिलि जाउगो॥२॥
तीरथ देखि न जल महि पैसउ जीअ जंत न सतावउगो॥
अठसठि तीरथ गुरू दिखाए घट ही भीतरि न्हाउगो॥३॥
पंच सहाई जन की सोभा भलो भलो न कहावउगो॥
नामा कहै चितु हरि सिउ राता सुंन समाधि समाउगो॥४॥२॥

 

ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਾਸਤ੍ਰ ਆਨੰਤਾ ਗੀਤ ਕਬਿਤ ਨ ਗਾਵਉਗੋ ॥