हरि को नामु लै ऊतम धरमा ॥ हरि हरि करत जाति कुल हरी ॥ सो हरि अंधुले की लाकरी ॥1॥ हरए नमसते हरए नमह ॥ हरि हरि करत नही दुखु जमह ॥1॥ रहाउ ॥ हरि हरनाकस हरे परान ॥ अजैमल कीओ बैकुंठहि थान ॥ सूआ पड़ावत गनिका तरी ॥ सो हरि नैनहु की पूतरी ॥2॥ हरि हरि करत पूतना तरी ॥ बाल घातनी कपटहि भरी ॥ सिमरन द्रोपद सुत उधरी ॥ गऊतम सती सिला निसतरी ॥3॥ केसी कंस मथनु जिनि कीआ ॥ जीअ दानु काली कउ दीआ ॥ प्रणवै नामा ऐसो हरी ॥ जासु जपत भै अपदा टरी ॥4॥1॥5॥ |
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਰਤ— |
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਰਤ ਮਿਟੇ ਸਭਿ ਭਰਮਾ ॥ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ਲੈ ਊਤਮ ਧਰਮਾ ॥ |