अंक : 873
रागु गोंड बाणी नामदेउ जी की घरु २
   एक ओंकार सतिगुर प्रसादि॥
 
हरि हरि करत मिटे सभि भरमा ॥
हरि को नामु लै ऊतम धरमा ॥
हरि हरि करत जाति कुल हरी ॥
सो हरि अंधुले की लाकरी ॥1॥
हरए नमसते हरए नमह ॥
हरि हरि करत नही दुखु जमह ॥1॥ रहाउ ॥

हरि हरनाकस हरे परान ॥
अजैमल कीओ बैकुंठहि थान ॥
सूआ पड़ावत गनिका तरी ॥
सो हरि नैनहु की पूतरी ॥2॥
हरि हरि करत पूतना तरी ॥
बाल घातनी कपटहि भरी ॥
सिमरन द्रोपद सुत उधरी ॥
गऊतम सती सिला निसतरी ॥3॥
केसी कंस मथनु जिनि कीआ ॥
जीअ दानु काली कउ दीआ ॥
प्रणवै नामा ऐसो हरी ॥
जासु जपत भै अपदा टरी ॥4॥1॥5॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਰਤ—

ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਰਤ ਮਿਟੇ ਸਭਿ ਭਰਮਾ ॥ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ਲੈ ਊਤਮ ਧਰਮਾ ॥