अंक : 525
गूजरी श्री नामदेव जी के पदे घरु १
एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
 
मलै न लाछै पार मलो परमलीओ बैठो री आई॥
आवत किनै न पेखिओ कवनै जाणै री बाई॥१॥
कउणु कहै किणि बूझीऐ रमईआ आकुलु री बाई॥१॥रहाउ॥
जिउ आकासै पंखीअलो खोजु निरखिओ न जाई॥
जिउ जल माझै माछलो मारगु पेखणो न जाई ॥२॥
जिउ आकासै घड़ूअलो म्रिग त्रिसना भरिआ॥
नामे चे सुआमी बीठलो जिनि तीनै जरिआ॥३॥२॥

मलै = मल का, मैल का। लाछै = लांछन, दाग, निशान। पारमलो = पार मल, मल रहित। परमलिओ = (संस्कृत: परिमल) सुगंधि। री = हे बहन! कवनै = कौन? री बाई = हे बहन!
कहै = बयान कर सकता है। किणि = किस ने? रमईआ = सोहाना राम। आकुलु = जिसकी कुल चार चुफेरे है) जो हर जगह मौजूद है, सर्व व्यापक।1। रहाउ।
निरखिओ न जाई = देखा नहीं जा सकता। माझै = में। मारगु = रास्ता।2।
आकासै = आकाश में , खुली जगह, मैदान में। घड़ूअलो = पानी का घड़ा (भाव, पानी)। म्रिग त्रिसना = ठॅग नीरा, वह पानी जो प्यासे हिरन को रेतीली जगह पर प्रतीत होता है (म्रिग = मृग, हिरन। त्रिसना = प्यास)। म्रिग त्रिसना घड़ूअलो = प्यासे हिरन का पानी, मृग तृष्णा का जल। चे = के। बीठलो = (सं: वि+स्थल, परे खड़ा हुआ) माया से निराला, निर्लिप प्रभू। जिनि = जिस (बीठल) ने। तीनै = तीनों ताप। जरिआ = जला दिए हैं।3।
मलै न लाछै पार मलो परमलीओ बैठो री आई ॥
आवत किनै न पेखिओ कवनै जाणै री बाई ॥१॥

हे बहन! उस सुंदर राम को मैल का दाग़ तक नहीं है, वह मैल से परे है, वह राम तो सुगंधि (की तरह) सब जीवों में आ के बसता है, (भाव, जैसे सुगंधि फूलों में है)। हे बहन! उस सोहने राम को कभी किसी ने पैदा होता नहीं देखा, कोई नहीं जानता कि वह कैसा है।1।

कउणु कहै किणि बूझीऐ रमईआ आकुलु री बाई ॥१॥ रहाउ ॥
हे बहन! मेरा सुंदर राम हर जगह व्यापक है, पर कोई जीव भी (उसका मुकम्मल स्वरूप) बयान नहीं कर सकता, किसी ने भी (उसके मुकम्मल स्वरूप को) नहीं समझा।1। रहाउ।

जिउ आकासै पंखीअलो खोजु निरखिओ न जाई ॥
जिउ जल माझै माछलो मारगु पेखणो न जाई ॥२॥

जैसे आकाश में पंछी उड़ता है, पर उसके उड़ने वाले रास्ते का खुरा-खोज देखा नहीं जा सकता, जैसे मछली पानी में तैरती है पर जिस रास्ते पर तैरती है वह राह देखी नहीं जा सकती (भाव, आँखों के आगे कायम नहीं किया जा सकता, वैसे ही उस प्रभू का मुकम्मल स्वरूप बयान नहीं हो सकता)।2।

जिउ आकासै घड़ूअलो म्रिग त्रिसना भरिआ ॥
नामे चे सुआमी बीठलो जिनि तीनै जरिआ ॥३॥२॥

जैसे खुली जगह मृग तृष्णा को जल दिखता है (आगे आगे बढ़ते जाएं पर उसका ठिकाना नहीं मिलता,इसी तरह प्रभू का खास ठिकाना नहीं मिलता। वैसे ही) नामदेव के पति बीठल जी ऐसे हैं जिसने मेरे तीनों ताप ( आध्यात्मिक, भौतिक, दैविक ) जला डाले हैं।3।2।