अंक : 485
आसा
 
आनीले कुमभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ॥
बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ॥१॥
जत्र जाउ तत बीठलु भैला॥
महा अनंद करे सद केला॥१॥रहाउ॥

आनीले फूल परोईले माला ठाकुर की हउ पूज करउ ॥
पहिले बासु लई है भवरह बीठल भैला काइ करउ ॥२॥
आनीले दूधु रीधाईले खीरं ठाकुर कउ नैवेदु करउ ॥
पहिले दूधु बिटारिओ बछरै बीठलु भैला काइ करउ॥३॥
ईभै बीठलु ऊभै बीठलु बीठल बिनु संसारु नही ॥
थान थनंतरि नामा प्रणवै पूरि रहिओ तूं सरब मही ॥४॥२॥
आनीले = लाए। कुंभ = घड़ा। भराईले = भराया। ऊदक = पानी। ठाकुर = मूर्ती, बुत। कउ = को। करउ = मैं कराऊँ। जी = जीव। बीठलु = (विष्ठल ) माया के प्रभाव से परे हरी। भैला = (भइला ) मराठी बोली ‘भूत काल’ बनाने के लिए क्रिया-धातु के आखिर में ‘ला’ लगाते हैं जैसे ‘आ’ से ‘आइला’, ‘कुप’ से ‘कोपिला’ आदिक; वैसे ही ‘भू’ से ‘भइला’ या ‘भैला’) बसता था, मौजूद था। काइ = किस लिए? क्यूँ?।1।
जत्र = जहाँ। जाउ = मैं जाता हूँ। केला = आनंद, चोज तमाशे।1। रहाउ।
परोईले = परो ली। हउ = मैं। बासु = सुगंधी, वासना। भवरह = भौरे ने।2।
रीधाईले = पका ली। नैवेदु = मूर्ति के आगे रखने वाले पदार्थों की भेट। बिटारिओ = झूठा किया। बछरै = बछरे ने।3।
ऊभै = ऊपर। ईभै = नीचे। थनंतरि = थान+अंतरि। थान थनंतरि = स्थान स्थान अंतर, हर जगह में। प्रणवै = विनती करता है। मही = धरती। सरब मही = सारी सृष्टि में।4।
आनीले कु्मभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ ॥
बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ ॥१॥

घड़ा ला के (उस में) पानी भरा के (अगर) मैं मूर्ति को स्नान कराऊँ (तो वह स्नान परवान नहीं, पानी झूठा है, क्योंकि) पानी में बयालिस लाख (जूनियों के) जीव रहते हैं। (पर मेरा) निर्लिप प्रभू तो पहले ही (उन जीवों में) बसता था (और स्नान कर रहा था, तो फिर मूर्ति को) मैं किस लिए स्नान करवाऊँ?।1।

जत्र जाउ तत बीठलु भैला ॥ महा अनंद करे सद केला ॥१॥ रहाउ ॥
मैं जिधर जाता हूँ, उधर ही निर्लिप प्रभू मौजूद है (सब जीवों में व्यापक हो के) बड़े आनंद-चोज-तमाशे कर रहा है।1। रहाउ।

आनीले फूल परोईले माला ठाकुर की हउ पूज करउ ॥
पहिले बासु लई है भवरह बीठल भैला काइ करउ ॥२॥

फूल ला के और उसकी माला परो के अगर मैं मूर्ति की पूजा करूँ (तो वह फूल झूठे होने के कारण वह पूजा परवान नहीं, क्योंकि उन फूलों की) सुगंधि तो पहले भौरे ने ले ली; (पर मेरा) बीठल तो पहले ही (उस भौरे में) बसता था (और सुगंधि ले रहा था, तो फिर इन फूलों से) मूर्ति की पूजा मैं किस लिए करूँ?।2।

आनीले दूधु रीधाईले खीरं ठाकुर कउ नैवेदु करउ ॥
पहिले दूधु बिटारिओ बछरै बीठलु भैला काइ करउ ॥३॥

दूध ला के खीर पका के अगर मैं यह खाने वाला उत्तम पदार्थ मूर्ति के आगे भेटा रखूँ (तो दूध झूठा होने के कारण भोजन परवान नहीं, क्योंकि दूध दूहने के समय) पहले बछड़े ने दूध झूठा कर दिया था; (पर मेरा) बीठल तो पहले ही (उस बछड़े में) बसता था (और दूध पी रहा था, तो इस मूर्ति के आगे) मैं क्यों नैवेद भेटा करूँ?।3।

ईभै बीठलु ऊभै बीठलु बीठल बिनु संसारु नही ॥
थान थनंतरि नामा प्रणवै पूरि रहिओ तूं सरब मही ॥४॥२॥ 

(जगत में) नीचे ऊपर (हर जगह) बीठल ही बीठल है, बीठल से वंचित जगत रह ही नहीं सकता। नामदेव उस बीठल के आगे विनती करता है– (हे बीठल!) तू सारी सृष्टि में हर जगह पर भरपूर है।4।2।