अंक : 1252
सारंग बाणी नामदेउ जी की ॥
एक ओंकार सतिगुर प्रसादि ॥
 
काएं रे मन बिखिआ बन जाइ ॥
भूलौ रे ठगमूरी खाइ ॥१॥ रहाउ ॥

जैसे मीनु पानी महि रहै ॥
काल जाल की सुधि नही लहै ॥
जिहबा सुआदी लीलित लोह ॥
ऐसे कनिक कामनी बाधिओ मोह ॥१॥
जिउ मधु माखी संचै अपार ॥
मधु लीनो मुखि दीनी छारु ॥
गऊ बाछ कउ संचै खीरु ॥
गला बांधि दुहि लेइ अहीरु ॥२॥
माइआ कारनि स्रमु अति करै ॥
सो माइआ लै गाडै धरै ॥
अति संचै समझै नही मूड़्ह ॥
धनु धरती तनु होइ गइओ धूड़ि ॥३॥
काम क्रोध त्रिसना अति जरै ॥
साधसंगति कबहू नही करै ॥
कहत नामदेउ ता ची आणि ॥
निरभै होइ भजीऐ भगवान ॥४॥१॥
ਰੇ—ਹੇ! ਕਾਏਂ—ਕਿਉਂ?
ਕਾਏਂ ਰੇ ਮਨ ਬਿਖਿਆ ਬਨ ਜਾਇ ॥ ਭੂਲੌ ਰੇ ਠਗਮੂਰੀ ਖਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥